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सत्तर और अस्सी के दशक में चर्चा में थी भोपाल की प्रोफेसर कॉलोनी

-प्रलय श्रीवास्तव

 मध्य प्रदेश के 1956 में हुए गठन के बाद भोपाल राजधानी बना था। तब भोपाल में अनेक बस्तियां या यूं कहा जाए तो कॉलोनियों का तेजी से विकास हुआ था । इस दौरान रोशनपुरा नाका  भोपाल का अंतिम छोर हुआ करता था।  पुराना भोपाल ही असली भोपाल था । नए भोपाल का तेजी से विकास हो रहा था। रोशनपुरा के अलावा श्यामला और  अरेरा पहाड़ी थी। मौजूदा  राज भवन बन चुका था।  वर्तमान  मुख्यमंत्री निवास भी श्यामला हिल  पर आकार ले रहा  था । इन  सबके बीच छोटी झील यानी कि छोटा तालाब अपना सौंदर्य बिखेर रहा  था। आजादी के बाद सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए  रविंद्र भवन का निर्माण भी हुआ, जिसका  शुभारंभ  1962 में प्रोफेसर  हुमायूं कबीर ने किया था ।  रवींद्र भवन के सामने  प्राध्यापकों के लिए प्रोफेसर कॉलोनी बसाहट हुई थी । नाम था प्रोफेसर कॉलोनी, लेकिन यहां अधिकतर आवासों का आवंटन  राजनेताओं और पत्रकारों को हुआ  था।  पत्रकारों की संख्या फिर भी ज्यादा थी लेकिन प्राध्यापक भी उनके बराबर के निवासी थे । बाद में अनेक राजनेता भी प्रोफेसर कॉलोनी में  निवासरत हुए। हालांकि आज इसका स्वरूप बदल चुका है और प्राध्यापकों की जगह अधिकांश   आवास विधायकों को आवंटित कर दिए गए हैं । प्रोफेसर कॉलोनी मिंटो हॉल (पुरानी विधानसभा), वल्लभ भवन और नई विधानसभा के समीप है, इसलिए  विधानसभा सचिवालय ने विधायकों के पूल में इस कालोनी के  मकानों का आरक्षण कर लिया है ।

    भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा और प्रख्यात अभिनेत्री जया  भादुड़ी सहित अनेक हस्तियां इस कॉलोनी की निवासी रही हैं। मुझे याद है जब 1970 में हम लोग रविंद्र भवन के सामने प्रोफेसर कॉलोनी के ई- 134/1  में रहने आए थे, तब यहां के मकान काफी आकर्षक और चहल-पहल से गूंजा करते थे। प्रोफेसर कॉलोनी  सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र भी था क्योंकि प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रविंद्र भवन प्रोफेसर कॉलोनी के ठीक सामने था। 1981 से भारत भवन  की गतिविधियां प्रारंभ हुई।  कला के इस नए घर का शुभारंभ 13 फरवरी 1981 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने  किया था । तब तक इन सभी केंद्रों के बीच प्रोफेसर कॉलोनी अपने आकर्षण और चर्चा का केंद्र बिंदु बन  चुका था।

प्रोफेसर कॉलोनी में अनेक वरिष्ठ पत्रकार रहे। इनमे  तरुण कुमार भादुड़ी, वीटी  जोशी, लेले,स्वरूप ,राधे श्याम शर्मा ,सत्यनारायण श्रीवास्तव, विद्यालंकार, सूर्य नारायण शर्मा, राजबहादुर पाठक, राजू संतानम, प्रभा रत्ना जी, महेंद्र कुमार मानव, अरुण पटेल,कैलाश गौर, एन .राजन ,आनंद शर्मा, राज भारद्वाज, अरविंद भंडारी आदि शामिल थी।  अनेक साहित्यिक विभूतियां भी यहां रहती थी।प्रसिद्ध रंगकर्मी बीवी  कारंत  भी इसी कालोनी में रहे। तत्कालीन विधानसभा स्पीकर  गुलशेर अहमद , नरसिंहराव दीक्षित , सीता राम  साधौ ,प्रसिद्ध चिकित्सक डा. एनपी  मिश्रा  सर्व घनश्याम सक्सेना,राम सरन, देवीसरण, सहित अन्य नामी गिरामी हस्तियों के  कारण इस कालोनी ने भोपाल में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की थी। 1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले  के प्रमुख किरदार सूरमा भोपाली को भला  कौन  भूल सकता है।

असलियत में जो सूरमा भोपाली यानि नाहर सिंह थे , वे प्रोफेसर कॉलोनी में ही रहते थे। पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने फिल्म में उनके नाम का इस्तेमाल किया था, जिसके बदले में उन्हें 33000 रुपए मिले थे।
 वरिष्ठ पत्रकार  बालमुकुंद भारती की धर्मपत्नी  प्रख्यात समाज सेविका, राजनेता  और  उस दौर के हम बच्चों में आंटी के नाम से लोकप्रिय  रही श्रीमती सविता वाजपेई आज भी उसी मकान में रह रही हैं को 1967 में उन्हें आवंटित हुआ था।  1970 से 1980 का वह दौर मुझे याद है , जब आंटी सविता वाजपेई  जी राजनीति और समाज सेवा के साथ-साथ प्रोफेसर कॉलोनी में रहने वाले हम बच्चों के लिए खेलकूद की खेलकूद और नैतिक शिक्षा  देने के लिए रविंद्र भवन के परिसर में राष्ट्रीय सेवा दल के बैनर तले  प्रतिदिन गतिविधियों का  आयोजन करती थी। उनके मार्गदर्शन में खेले कूदे,  पले बढ़े वही  बच्चे आज  न सिर्फ बड़े हो चुके हैं बल्कि  हर क्षेत्र में  सफल हुए हैं ।  उन बच्चों को प्रगति में आंटी सविता वाजपेई जी का अहम योगदान रहा है ,क्योंकि उनके द्वारा आयोजित सेवा दल में जहां  उन्हें संस्कारों और आदर्शों की शिक्षा प्राप्त हुई वहीं खेलकूद से शरीर स्वस्थ  भी हुआ। उसी के बल पर हम शिक्षित और अपने-अपने क्षेत्र में पारंगत हो सके।

 सविता वाजपेई जी का देश के अनेक महान राजनेताओं विशेषकर समाजवादी नेताओं से निकटता रही है । इनमें प्रोफेसर मधु दंडावते,हरि विष्णु कामथ,मधु लिमये, चंद्रशेखर ,यशवंत सिन्हा ,प्रमिला दंडवते,चंपा  लिमये आदि प्रमुख हस्तियां शामिल रही है ।  मुझे याद है इनमें से अनेक राजनेता भोपाल आगमन पर प्रोफेसर कॉलोनी में उनके निवास पर जरूर आते थे। साल 1979 से मैंने  लेखन कार्य शुरू किया था ।  इब्राहिमपुरा से निकलने वाले साप्ताहिक हिंदी हैराल्ड के मालिक गुप्ता जी ने  1981 में मुझे किसी एक बड़ी हस्ती का इंटरव्यू लाने को कहा था। तब मैंने आंटी  सविता वाजपेई से पूछा तो पता चला कि  पूर्व केंद्रीय मंत्री  मधु दंडवते जी उनके निवास पर आने वाले हैं।  तब मैंने तय किया कि दंडवते जी का मैं इंटरव्यू लूंगा ।  मैंने कुछ प्रश्न तैयार किये , जिसे आंटी जी ने फाइनल किया। कुछ दिन बाद  मैं मधु  दंडवते जी के सामने  था और साथ में मेरे प्रश्न थे। जीवन का पहला साक्षात्कार, वह भी एक बड़ी हस्ती से ,तो मेरा पसीना – पसीना होना  स्वाभाविक था। 

जैसे – तैसे इंटरव्यू समाप्त हुआ और हिंदी हैराल्ड में वह छपा था, जिसका पारिश्रमिक मुझे ₹10 प्राप्त हुआ था। यह मेरे लिए उल्लेखनीय उपलब्धि थी ।लेकिन यह सब कुछ हो पाया था सविता वाजपेई जी के कारण । इससे   मेरे अंदर का जो डर था, वह हमेशा के लिए दूर हुआ। धीरे-धीरे शासकीय सेवा और फिर आगे बढ़ता गया और 43.5 साल बाद  सर्विस पूरी की। इस दौरान अनेक सम्मान भी प्राप्त हुए ,पदोन्नति भी प्राप्त की , समाज सेवा के साथ साहित्य  सेवा भी की । इस दौरान मैंने दो पुस्तक लिखी ,पहली मध्य प्रदेश में चुनाव और नवाचार तो दूसरी पुस्तक अभिव्यक्ति के चार दशक  है।  जिसमें मेरे द्वारा 44 साल के दौरान प्रकाशित हुए  लेखों का संग्रह है। हाल में  जब 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुआ तो सीधे पहुंच गया आंटी सविता वाजपेई  जी का आशीर्वाद लेने । उन्हे अपनी पुस्तक भी भेंट की और फोटो भी खिंचवाई। आज सविता वाजपेई जी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं।  86 वर्ष की हो चुकी हैं और प्रोफेसर  कॉलोनी में उसी पुराने आवास ई 179 /4  रह रही हैं ।

      समाज सेवा और राजनीति में सविता वाजपेई जी के योगदान को नई पीढ़ी खासतौर से मीडिया जगत की नई पीढ़ी शायद नहीं जानती कि वे पूर्व मंत्री भी रह चुकी हैं । सविता वाजपेई जी की याददाश्त आज भी बरकरार है । छोटी सी मेरी मुलाकात में उन्होंने 45 साल पुराने दिनों को याद किया। उनके मन में विचारों और चिंतन की लहरें  आज भी वैसे ही है ,जैसी उस दौर में हुआ करती थी। आज के जमाने के कम ही लोग जानते होंगे कि सविता वाजपेई जी एक नहीं तीन मुख्यमंत्री के अंतर्गत राज्य मंत्री और मंत्री रह चुकी हैं । मुझे याद है 1977 – 80 का  वह दौर, जब  देश में  विभिन्न घटकों को मिलाकर जनता पार्टी  सरकार स्थापित हुई थी। मध्य प्रदेश में भी विभिन्न घटकों को मिलाकर जनता पार्टी की सरकार बनी थी ।

1977 में पहले मुख्यमंत्री बने थे कैलाश जोशी ।  सोशलिस्ट समाजवादी पार्टी की तरफ से जनता सरकार में शामिल हुई  थी सविता वाजपेई जी । वे सीहोर से विधायक चुनी गई थी । उस समय उन्हें मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के रूप में शपथ लेनी थी, लेकिन उन्होंने  सरकार में शामिल हुए घटकों के असंतुलन अथवा कहे तो समीकरण को लेकर शपथ लेने से इंकार कर दिया था। तब प्रोफेसर कॉलोनी में सीहोरवासियों और उनके समर्थकों का भारी प्रदर्शन हुआ था । हम बच्चे थे तो छत पर से देखा करते थे ।  आंटी सविता वाजपेई  के अनुसार तब चंद्रशेखर  जो कि जनता पार्टी के अध्यक्ष थे ,ने उन्हें समझाया था कि सविता जी आप मंत्री पद की शपथ लीजिए ।  लोग मंत्री बनने के लिए तरसते हैं।  चंद्रशेखर की सलाह पर श्रीमती सविता वाजपेई ने राज्य मंत्री पद की शपथ ली थी । जोशी मंत्रिमंडल में  वे  लोक निर्माण राज्य मंत्री बनी थी। 

बाद में  कैलाश जोशी  को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था और वीरेंद्र कुमार सकलेचा को नया मुख्यमंत्री चुना गया था । तब आंटी सविता वाजपेई ने सिंचाई राज्य मंत्री का दायित्व संभाला था। राजनीतिक उठा- पटक के बाद 1980  के प्रारंभ में   सुंदरलाल  पटवा को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना गया था। जनता पार्टी की सरकार में वे तीसरे मुख्यमंत्री थे। श्रीमती सविता वाजपेई को मंत्री पद पर पदोन्नति देकर उन्हें उच्च शिक्षा विभाग का दायित्व सौंपा गया था।  राजनीति में पूरी तरह सफल रहने के बाद भी  उन्होंने अपनी गतिविधियां कम  नहीं की थी और न ही हम बच्चों से अपना स्नेह, दुलार छोड़ा था । उन्होंने बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी भी स्थापित की थी, जिसमें हम लोग गर्मी की छुट्टी में  आनंद लिया करते थे । इसके बाद  समाज सेवा से निरंतर  जुड़ते हुए उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।

आंटी सविता वाजपेई  को सुपुत्री डा . श्रद्धा अग्रवाल ने मुझे  राष्ट्रीय स्तर पर संविधान को लेकर छिड़ी हुई चर्चा के  संदर्भ में  बताया कि किस प्रकार  संविधान सभा के मेंबर  हरि विष्णु कामथ जी ने  मम्मी (सविता वाजपेई) को संविधान की  स्वणाक्षरों  से लिखित मूल प्रति उन्हें भेंट की थी। जिसे उन्होंने बाद में  उन्होंने  माधवराव सप्रे संग्रहालय को सौंप दिया  था।सविता वाजपेई जी के सानिध्य में रविंद्र भवन के प्रांगण में जिन बच्चों ने खेलकूद और  धमा – चौकड़ी मचाई , आज वे सभी बच्चे उनके स्वस्थ और  दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।

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