मध्य प्रदेश में अब तक कुल 60 ब्रेन डेथ अंग दान ही हुए, इस मामले में सबसे आगे तेलंगाना

भोपाल

आज से नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं। नौ दिन तक अलग-अलग रूप में देवी की शक्ति के रूप में आराधना की जाएगी। ऐसी ही हमारे देश की नारी शक्ति है जो समर्पण का अप्रतिम उदाहरण बन रही है। नेशनल आर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गनाइजेशन (नोटो) द्वारा जनवरी से दिसंबर, 2023 के बीच देशभर में हुए अंग दान और अंग प्रत्यारोपण के आंकड़े इसका प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं।

कुल किडनी प्रत्यारोपण करवाने वालों में महिलाएं 37 प्रतिशत, लिवर में 30 प्रतिशत, हार्ट में 24 प्रतिशत और पैंक्रियाज में 26 प्रतिशत हैं। फेफड़ा ट्रांसप्लांट में जरूर महिलाओं की संख्या लगभग पुरुषों के बराबर है। बता दें, देश में वर्ष 2013 में 4,990 अंग दान हुए थे जो लगातार बढ़ते हुए 2023 में 18,378 हो गए हैं।

दिल्ली सबसे आगे

वर्ष 2023 में जीवित व्यक्ति के अंग दान के बाद प्रत्यारोपण के मामले में सबसे आगे दिल्ली रहा। यहां 4,275 अंग प्रत्यारोपित हुए। इसके बाद तमिलनाडु में 1,833, महाराष्ट्र में 1,493, केरल में 1,376 और बंगाल में 1,021 अंग प्रत्यारोपित हुए। ब्रेन डेथ लोगों के अंग दान के मामले में सबसे आगे तेलंगाना है।

हालांकि, इनके अंगों के प्रत्यारोपण तमिलनाडु में सर्वाधिक 595 किए गए। इसके बाद क्रमश: तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात हैं। जिन राज्यों में प्रत्यारोपण की सुविधाएं कम हैं वे पिछड़े हैं। मध्य प्रदेश में अब तक कुल 60 ब्रेन डेथ अंग दान हुए हैं।

दो तरह से होता है अंग दान

ब्रेन स्टेम डेथ अंग दान

जब व्यक्ति का ब्रेन काम करना बंद कर देता हैं पर हृदय कुछ देर तक काम करता रहता है। उस अवस्था में छह अंग (हार्ट, लिवर, किडनी, फेफड़ा, पैंक्रियाज और छोटी आंत) दान किए जा सकते हैं।

लिविंग अंग दान

जब जीवित व्यक्ति अंग दान करता है तो उसे लिविंग अंग दान कहा जाता है। जैसे एक किडनी या फिर लिवर का अंश।

महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा भावुक

    लिविंग अंग दान में महिलाओं द्वारा पुरुषों से अधिक अंग दान किए जाने की वजह सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक है। आमतौर पर पुरुष कामकाजी होते हैं। ऐसे में परिवार के अधिकतर लोगों की धारणा रहती है यदि महिला की किडनी मिलान हो रही है तो किसी पुरुष की नहीं ली जाए। महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा भावुक होती हैं। वह न केवल सहजता से अंग दान के लिए तैयार होती हैं, बल्कि देने के लिए जिद भी करती हैं। सामाजिक पक्ष यह है कि जब अंग लगाकर उनकी जान बचाने की बात आती है तो कई बार वे खुद किसी स्वजन का अंग लेने से मना कर देती हैं या फिर स्वजन उनके उपचार में कम गंभीरता दिखाते हैं।

 – डॉ. राकेश भार्गव, सदस्य, अंगदान राज्य प्राधिकार समिति

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *