राजस्थान-चित्तौड़गढ़ में 81 की उम्र में लॉ करने सरपाल सिंह रोज जा रहे कॉलेज

चित्तौड़गढ़.

जिंदा रहने के लिए जीवन में शौक जरूरी है। जीने के लिए काम करता रहता हूं। पढ़ाई को मैंने शौक बनाया इसलिए अब लॉ की पढ़ाई कर रहा हूं। काम करते रहने से स्पीड बनी रहती है। जीवन में इससे अनुभव भी मिलता है। यह कहना है चितौड़गढ़ शहर के प्रतापनगर निवासी सरपाल सिंह अरोड़ा (सिक्ख) का, जिन्होंने 81 साल की उम्र में एलएलबी प्रथम वर्ष के लिए प्रवेश लिया है और अपने पौत्र और पौत्री की उम्र के बच्चों के साथ बैठकर रोजाना लॉ कॉलेज आकर पढ़ाई कर रहे हैं।

लॉ करने का जुनून इतना कि बीए में अंक कम होने के कारण लॉ में प्रवेश मिलना मुश्किल था तो हिस्ट्री विषय में एमए प्रथम श्रेणी से पास की। इस उम्र में पढ़ाई के प्रति जुनून से वे आज के युवाओं को पढ़ाई के प्रति प्रेरित कर रहे हैं। जानकारी में सामने आया कि चित्तौड़गढ़ शहर के प्रतापगढ़ निवासी सरपाल सिंह अरोड़ा धनेत मार्ग स्थित लॉ कॉलेज में एडमिशन के लिए पहुंचे तो यहां के स्टाफ को काफी आश्चर्य हुआ। यहां के प्राचार्य एसडी व्यास ने अपने नए वयोवृद्ध स्टूडेंट से बात की तो इनके जुनून को देखते हुए वे काफी प्रभावित हुए। नई जनरेशन के स्टूडेंट की तरह इनमें भी सीखने की ललक दिखी। सरपाल सिंह अरोड़ा ने इसी साल एडमिशन लिया। वे इस उम्र में भी नियमित लॉ कॉलेज आ रहे हैं। अपनी उम्र से काफी छोटे विद्यार्थियों के साथ बैठकर नियमित पढ़ाई करना आश्चर्यजनक है। इस उम्र में लॉ करने का जज्बा इन्हें उन लोगों से अलग दिखाता है, जो एक उम्र के बाद शिक्षा और शौक से दूर हो जाते हैं। वहीं सरपालसिंह अरोड़ा ने लॉ की पढ़ाई करने के लिए इससे पहले एमए किया। इन्होंने लॉ करने के लिए अपने परिचित एमएलवी कॉलेज के व्याख्याता से राय ली, जिन्होंने इनका मार्गदर्शन किया था।

एलएलबी के बाद करनी है पीएचडी
अरोड़ा का कहना है कि पढ़ाई करने की कोई उम्र नहीं होती है। किसी भी उम्र में पढ़ाई करके डिग्री हासिल कर सकते हैं। पढ़ाई में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है। पढ़ाई करते समय अब जरूर चश्मा लगाना पड़ता है। एलएलबी करने के बाद पीएचडी करनी है। अरोड़ा ने बताया कि उनके दो पुत्र हैं और दोनों इंजीनियरिंग पार्ट्स की बिक्री से जुड़े हैं। पौत्र और पौत्री की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है लेकिन इन्हें इस उम्र में एजुकेशन लेने में किसी प्रकार की शर्म नहीं है।

40 साल बाद फिर देखी कॉलेज की चौखट
सरपाल सिंह अरोड़ा ने बताया कि उनका जन्म 3 फरवरी 1945 को हुआ था। उन्होंने 1984 में बीए पूरी की थी। 1972 में परीक्षा दी लेकिन एक विषय में सप्लीमेंट्री आई थी। इसके दस साल बाद इस विषय की परीक्षा देकर बीए उत्तीर्ण की थी। अब उन्होंने करीब 40 साल बाद फिर से कॉलेज की चौखट देखी है।

यंग जनरेशन से सीखने को मिलता है
अपने पौत्र और पौत्री की उम्र के बच्चों के साथ बैठकर शर्म महसूस करने के सवाल पर अरोड़ा ने बताया कि क्लास में बच्चे उनका सम्मान करते हैं। कालांश बदलता है तो बच्चों के साथ वे हंसी-मजाक करते हैं। किसी भी प्रकार से अजीब महसूस नहीं होता। इनसे ज्ञान भी लेते रहते हैं। यंग जनरेशन की याददाश्त अच्छी है। इनसे सीखने को भी मिलता है। कॉलेज में भी अनुशासन अच्छा है।

अपना केस खुद लडूंगा
सरपालसिंह अरोड़ा ने बताया कि मुझे पढ़ना है इसलिए मैं नियमित कॉलेज आता हूं। भूखंड विवाद का एक मामला न्यायालय में चल रहा है। आने वाले समय में अपना केस मैं स्वयं लड़ना चाहता हूं।

वाहे गुरु पर भरोसा, जिंदा रखेंगे
इस उम्र में स्वास्थ्य पर ध्यान देने के सवाल पर अरोड़ा ने बताया कि उन्हें वाहे गुरु पर पूरा भरोसा है। वे जिंदा भी रखेंगे और लॉ की पढ़ाई भी पूरी करवाएंगे। आगे उन्होंने कहा कि एक उम्र के बाद भी जिंदा रहने के लिए कुछ ना कुछ करते रहना चाहिए।

कम ही दिखता है ऐसा जुनून
महाराणा प्रताप लॉ कॉलेज के प्राचार्य एसडी व्यास ने बताया कि इस उम्र में पढ़ाई का जुनून कम ही दिखाई देता है। जब सरपाल सिंह प्रवेश के लिए आए तब सीट पूरी हो चुकी थी, प्रवेश की तिथि भी निकल गई थी। बाद में सीट भी बढ़ी और प्रवेश की तिथि भी तो इन्हें कॉल करके बुलाया। कक्षा में भी युवा विद्यार्थी की तरह इनमें सीखने की ललक दिखाई देती है।

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