हरियाणा में 10 साल पहले परमानेंट हुए कर्मचारियों को अब नायब सरकार देगी पदोन्नति

चंडीगढ़
हरियाणा में 10 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार की विदाई से ठीक पहले पक्के हुए कर्मचारियों को अब सरकार पदोन्नति देगी। विगत 13 जून से इन कर्मचारियों को पहली पदोन्नति और एश्योर्ड करियर प्रमोशन (एसीपी) का लाभ दिया जाएगा। सरकार के फैसले से करीब पांच हजार कर्मचारियों को लाभ होगा। वर्ष 2014 की पॉलिसी के तहत पक्के हुए कर्मचारियों को सरकार ने राहत देते हुए पदोन्नति देने का निर्णय लिया है। हालांकि ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर निर्भर करेंगी।

उपायुक्तों को निर्देश जारी
मुख्य सचिव के अधीनस्थ मानव संसाधन विभाग ने इस संबंध में सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्ष, बोर्ड-निगमों के प्रबंध निदेशक और मुख्य प्रशासक, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार, मंडलायुक्तों और उपायुक्तों को निर्देश जारी कर दिए हैं। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने विगत छह मार्च को अंतरिम आदेश के तहत इन कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक हटा दी थी। इसके बाद से ही विभिन्न विभागों और बोर्ड-निगमों से सरकार से स्पष्टीकरण मांगा जा रहा था कि 2014 की नियमितीकरण नीति के तहत नियमित हुए कर्मचारियों को पदोन्नति या प्रथम एसीपी स्केल का लाभ दिया जाए या नहीं। सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि यह कर्मचारी पदोन्नति या प्रथम एसीपी स्केल के लाभ के लिए पात्र होंगे, बशर्ते कि वे पात्रता शर्तें पूरी करते हों। 13 जून से पहले पात्रता की तिथि से पदोन्नति या प्रथम एसीपी स्केल के लाभ पर निर्णय बाद में लिया जाएगा।

सरकार जाने से पहले तीन पॉलिसी लेकर आए थे हुड्डा
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने वर्ष 2014 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने के लिए तीन अलग-अलग पॉलिसी बनाईं थी। पहली पॉलिसी 18 जून 2014 को बनाई गई, जिसमें तीन साल पूरे करने वाले करीब पांच हजार कर्मचारियों को पक्का कर दिया गया। जुलाई में फिर से नई नियमितीकरण पॉलिसी बनाते हुए 31 दिसंबर 2018 तक दस साल पूरे करने वाले कर्मचारियों को नियमित करने की व्यवस्था की गई। इसके बाद मामला हाई कोर्ट में चला गया।

हाई कोर्ट ने हटाने के जारी कर दिए थे आदेश, सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत
जून 2018 में हाई कोर्ट ने वर्ष 2014 की नियमितीकरण पॉलिसी पर रोक लगाते हुए वर्ष 2016 में पक्के हुए पांच हजार कर्मचारियों के साथ ही अनुबंध पर काम कर रहे दूसरे सभी कर्मचारियों को हटाने के आदेश जारी कर दिए थे। जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस सुदीप आहलूवालिया की खंडपीठ ने सोनीपत निवासी योगेश त्यागी व अन्य की याचिकाओं को सही माना जिसमें तर्क दिया गया कि कच्चे कर्मचारियों की नियुक्ति करते हुए किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। इन कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला सीधे तौर पर बैकडोर एंट्री है। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया, जिसने 26 नवंबर 2018 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी कर दिए। इसके बाद प्रदेश सरकार ने 18 जून 2020 को इन कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी थी।

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