भदोही
ईरान-इजरायल युद्ध का असर कालीनों के निर्यात पर दिखाई पड़ने लगा है। कालीन नगरी भदोही में अरबों रूपये के निर्यात ऑर्डर निरस्त होने से कालीन उद्योग में बेचैनी है। कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (सीईपीसी) के प्रशासनिक समिति सदस्य एवं अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एकमा) के मानद सचिव पीयूष बरनवाल ने बताया कि ईरान व इजरायल दोनों भारतीय कालीनों के अच्छे आयातक देशों में माने जाते हैं। युद्ध उन्माद में उलझे इन देशों में भारतीय कालीन की मांग न के बराबर हो गई है। वहीं अमेरिका भारतीय कालीनों का प्रमुख आयातक देश है जहां भारतीय कालीनों के कुल निर्यात का 25 से 30 फीसद अकेले अमेरिका को जाता है। ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका के कूदने से हालात और बिगड़ने के आसार बन गए हैं। अस्थिरता के कारण अमेरिकी देशों से आने वाले बायर कतरा रहे हैं। जिसका भारी भरकम खामियाजा कालीन उद्योग जगत को भुगतना पड़ रहा है।
पहलगाम की घटना की प्रतिक्रिया में भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की के पाकिस्तान को खुले समर्थन से बिगड़े हालातों के बीच दोनों देशों के बीच तनाव बड़ा है। तुर्किए भी भारतीय कालीनों का एक मजबूत कालीन आयातक देश माना जाता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की में भी कालीन निर्यात पर काफी विपरीत असर पड़ा है। कहा कि हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो आर्थिक चुनौतियां लगातार बढ़ेंगी। उन्होने बताया कि ऐसे हालात में लोग विलासिता की दुनियां को दरकिनार करते हुए धन बचाने की कवायद में लग गए हैं। वे अपनी सारी जरूरतें पूरी करने के बाद ही कालीन पर खर्च करने के मूड में दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार लगभग ढाई से पौने तीन सौ करोड़ के निर्यात आर्डर निरस्त हो चुके हैं। पीयूष बरनवाल ने कहा कि मिडिल ईस्ट में तनाव कम नहीं हुआ तो बॉयर यहां आने से कतराएंगे। अगर युद्ध लंबा खींचा तो एकबार फिर स्थितियों के बिगड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है।