उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखकर इस प्रकार से करें पूजन, छूमंतर हो जाएगें रोग

प्राचीन काल में ऋषि-महर्षियों को शरीर को निरोगी रखने का रहस्य पता था, इसलिए उन्होंने कुछ ऐसे विधान बनाए, जिनका पालन अगर मनुष्य श्रद्धा-विश्वास के साथ बिना तर्क, वितर्क, कुतर्क किए करे, तो ऐसे में उसे लाभ ही लाभ मिलना है। इन विधानों का पालन करने से कभी भी कोई नुकसान नहीं होता है। आज जानेंगे, उत्पन्ना एकादशी के महत्व के बारे में जो शरीर को रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति उत्पन्न करती है।

आज के समय में जीवन शैली के परिवर्तन से डाइबिटीज़, कैंसर जैसी बीमारियों का बोलबाला है, जिसके कारण दवाओं पर अत्यधिक व्यय होता है, परन्तु अगर हम प्राचीन नियम, विधि-विधानों का पालन करें, एकादशी आदि का व्रत हर पक्ष में रखें, तो उसका चमत्मकारिक परिणाम देखने को मिलता है। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार जब हम हर पंद्रह दिन में व्रत रखते हैं और उस दौरान कुछ नहीं खाते हैं, तो ऐसे में शरीर के अन्दर स्थित कैंसर आदि सेल्स अपने आप ही मरने लग जाते हैं।

गरिष्ठ भोजन का त्याग और एकादशी के दिन आवश्यक रूप से व्रत है वरदान – पद्म, स्कंद और विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि एकादशी व्रत में अन्न नहीं खाना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार समस्त बीमारियां वात, पित्त, कफ त्रिदोष असंतुलन के कारण होती हैं एकादशी के दिन उपवास त्रिदोषों के संतुलन में सहायक होता है। एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ होता है, मन प्रसन्न होता है जिससे सकारात्मक चिंतन व्यक्ति को सफलता दिलाता है।

पूजन विधि-विधान – उत्पन्ना एकादशी का व्रत, पूजन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि एवं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर भगवान का पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। भगवान को केवल फलों का ही भोग लगाने का विधान है। व्रत रखने वालों को दशमी के दिन रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। जीवन में शनि दुख और गुरू ज्ञान को दर्शाता है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी के दिन शनि की स्वराशि तथा गुरु की वृष राशि की स्थिति में किया गया निःस्वार्थ दान-पुण्य, सेवा कार्य व्रतकर्ता का भाग्योदय सुनिश्चिित करेगा। कल्याण के लिए एकादशी के दिन विष्णु भगवान का पूजन, पितृ तर्पण, पीपल के वृक्ष में जल अर्पण अवश्य करें। उत्पन्ना एकादशी का व्रत विधि-विधानपूर्वक रखने से सर्व प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा माना जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को उत्पन्ना एकादशी के महत्व, विधि-विधान एवं एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *