राजस्थान-बीकानेर में औद्योगिक प्रदूषण ने छीना सांसों का सुकून

बीकानेर.

देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य इलाकों में प्रदूषण को लेकर चर्चा हो रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, लेकिन बीकानेर में एक ऐसा गांव है, जहां प्रदूषण का मानक इन सबसे कहीं ज्यादा है। प्रदूषण से गांव का हर घर पीड़ित है। इतना ही नहीं अब तो लोग यहां अपनी बेटी की शादी करने से भी परहेज करने लगे हैं। बावजूद इसके अभी तक जिम्मेदारों की आंखें नहीं खुली हैं।

बदलते समय के साथ औद्योगिक विकास का पहिया चलना जरूरी है, लेकिन ऐसे विकास से यदि मानव जीवन के साथ खिलवाड़ हो या उसे खतरे में डाला जाए तो ऐसा विकास किस काम का? बीकानेर जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे खारा गांव में रहने वाले लोगों के लिए अब यह औद्योगिक विकास जान पर आफत बनकर आया है। औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों को लेकर पीबीएम अस्पताल के श्वसन रोग विभाग के डॉ. गुंजन सोनी ने बताया कि खारा गांव में AQI (Air Quality Index) लेवल बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि यहां प्रदूषण में पीएम 10 कण पाए गए हैं, जिससे खांसी, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में संक्रमण और यहां तक कि कैंसर का खतरा भी रहता है। उन्होंने कहा कि पीएम-10 की अधिक मात्रा से श्वसन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे खांसी के दौरे, घबराहट और अस्थमा से लोगों को समस्या होती है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में आउटडोर में खारा से आने वाले मरीजों में इस तरह की दिक्कत देखी गई है। दरअसल यहां स्थापित वूलन और पीओपी फैक्ट्रियों की संख्या ज्यादा है और अधिकांश प्रदूषण पीओपी फैक्ट्री के चलते होता है क्योंकि गांव से कुछ ही दूरी पर रीको इंडस्ट्रियल एरिया है, जहां करीब 40 पीओपी फैक्ट्रियां हैं, इनसे निकलने वाला धुआं रूपी पाउडर यहां के लोगों की बीमारी का कारण बन गया है। ग्रामीण गजेसिंह का कहना है कि गांव की कुल आबादी के 40 प्रतिशत लोग बीमार हैं और हर घर में सांस और दमा के मरीज हैं। खारा गांव में पीओपी की फैक्ट्रियों के कारण वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चीफ इंजीनियर प्रेमालाल ने अपनी टीम के साथ यहां 3 दिन तक हालात का जायजा लिया और अब सरकार को उसकी रिपोर्ट सौंपी जाएगी। उन्होंने भी माना कि पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा मानक से कई गुना तक ज्यादा पाई गई। आम दिनों में इसकी मात्रा 1528 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही, जबकि मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। गांव के हर घर की छत पर जमी हुई बारीक पाउडर की परत साफ देखी जा सकती है।

हालांकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के आने की सूचना के बाद यहां POP की सारी फैक्ट्रियां 3 दिन तक बंद रहीं। अमर उजाला की टीम ने जब ग्राउंड रिपोर्ट पर लोगों से बात की तो लोगों का कहना था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के सामने हालात सामान्य नजर आए। इसके लिए फैक्ट्रियों को बंद रखा गया और सड़कों पर भी पानी गिराया गया, ताकि धूल-मिट्टी नहीं उड़े और हकीकत को छुपाया जा सके। गांव के भंवरसिंह खारा का कहना है कि हमने हर जगह अपनी बात पहुंचा दी लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुल रही हैं और अब हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। समय रहते यदि बात मान ली गई तो ठीक, नहीं तो आरपार की लड़ाई लड़ी जाएगी। ग्रामीण सुरेश पारीक कहते हैं कि यह समस्या अब हमारे लिए धीरे-धीरे बहुत गंभीर होती जा रही है, क्योंकि गांव के हर घर में इस प्रदूषण के चलते सांस और फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी के मरीज सामने आ रहे हैं। अब तो कोई रिश्तेदार अपनी बहन-बेटी की शादी हमारे गांव में करना नहीं चाहता और यदि कोई एक दिन यहां आकर रुकता है तो वह अगले दिन जल्दी से जल्दी निकलने की कोशिश करता है।
उन्होंने कहा कि इस प्रदूषण के चलते गांव में लड़कों की शादी होना अब मुश्किल होता जा रहा है। वही गांव की सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल सुमनलता सेठी ने जिला प्रशासन के अधिकारियों पर इस मामले को लेकर असंवेदनशील होने का आरोप लगाते हुए कहा कि स्कूल से 100 मीटर की दूरी पर पीओपी की फैक्टरियां हैं। जब इन फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन चालू रहता है तो यहां सांस लेना तक दूभर हो जाता है। बहरहाल औद्योगिक विकास के बीच अब ग्रामीण भी आरपार की लड़ाई के मूड में दिखाई दे रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *